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सामान्य अध्ययन पेपर– II शासन व्यवस्था, संविधान, राजव्यवस्था, सामाजिक न्याय तथा अंतर्राष्ट्रीय संबंध


संदर्भ

भारत मेंएक राष्ट्र, एक चुनावकी अवधारणा नई नहीं है—1952 से 1967 तक देश में लोकसभा और अधिकांश राज्य विधानसभाओं के चुनाव स्वाभाविक रूप से समकालिक ही होते थे। परंतु 1967 के बाद लगातार राजनीतिक अस्थिरता, मध्यावधि चुनाव, और कई सरकारों के समय से पहले गिरने के कारण यह समकालिकता टूट गई। परिणामस्वरूप भारत एक निरंतर चुनावी चक्र वाले राष्ट्र में बदल गया, जिससे शासन, वित्तीय संसाधनों और प्रशासनिक तंत्र पर स्थायी दबाव पड़ा। वहीं पिछले एक दशक में चुनावी खर्च, सुरक्षा तैनाती और आदर्श आचार संहिता (MCC) के बार-बार लागू होने से जुड़े मुद्दों ने इस बहस को फिर तेज किया है। 2023 में केंद्र द्वारा गठित रामनाथ कोविंद समिति और 2025 में विधि मंत्रालय की नई टिप्पणी ने इस विषय को पुनः राष्ट्रीय विमर्श के केंद्र में ला दिया है, जहाँ संवैधानिक वैधता, संघीय संरचना, लोकतांत्रिक उत्तरदायित्व और व्यावहारिकताचारों को संतुलित करने की चुनौती सबसे महत्वपूर्ण हो जाती है।


एक राष्ट्र, एक चुनाव: संकल्पना और उद्देश्य

एक राष्ट्र, एक चुनावसे अभिप्राय है कि लोकसभा और सभी राज्य विधानसभाओं के चुनाव एक ही समय पर अथवा निकटवर्ती चरणों में कराए जाएँ।
इसका मुख्य लक्ष्य है

  • चुनावी चक्र की बारम्बारता को समाप्त करना,
  • शासन व्यवस्था में निरंतरता बढ़ाना,
  • निर्वाचन प्रक्रिया पर होने वाले व्यय और प्रशासनिक बोझ को कम करना,
  • तथा चुनावी राजनीति के कारण विकास कार्यों में आने वाली नियमित बाधाओं को न्यूनतम करना है

चर्चा में क्यों?

  • संविधान (129वाँ संशोधन) विधेयक, 2024:
  • संसद में प्रस्तुत यह विधेयक चुनावों के समकालिक संचालन का संवैधानिक आधार तैयार करता है और वर्तमान में JPC के विचाराधीन है।
  • विधि मंत्रालय का पक्ष
  • कार्यकाल में एक बार की कटौती अनुच्छेद 83(2) एवं 172(1) के अंतर्गत वैध है, क्योंकि संविधान स्वयं समय से पहले विघटन की अनुमति देता है।
  • मंत्रालय का मत है कि इससे लोकतंत्र, न्यायपालिका की स्वतंत्रता, संघवाद या मूल ढाँचे के अन्य सिद्धांतों पर कोई प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ता।
  • 23वें विधि आयोग का समर्थन:
  • विधि आयोग ने भी अपने नवीनतम अवलोकन में कहा कि यह मॉडल मतदान के अधिकार का हनन नहीं करता, और यदि संवैधानिक संशोधन आवश्यक बहुमत से पारित हो जाए, तो इसका कार्यान्वयन पूरी तरह वैध होगा।
  • 28 नवंबर 2025 को केंद्रीय विधि मंत्रालय द्वारा संसद की संयुक्त संसदीय समिति (JPC) के समक्ष प्रस्तुत अपने विस्तृत लिखित पक्ष में यह कहा गया कि लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के कार्यकाल को एक बार के लिए समकालिक करने हेतु आंशिक कटौती करना संविधान के मूल ढाँचे का उल्लंघन नहीं है
  • इस टिप्पणी के बादएक राष्ट्र, एक चुनावका मुद्दा पुनः राष्ट्रीय बहस के केंद्र में गया हैविशेषकर इसके संवैधानिक, राजनीतिक और संघीय प्रभावों को लेकर।

संवैधानिक बहस : मूल ढाँचा बनाम संघीय संरचना

विवाद का प्रश्न

आलोचकों का तर्क

सरकार/विधि मंत्रालय का पक्ष

मूल ढाँचा

पाँच वर्षों के तय कार्यकाल को कम करनाआवधिक चुनावोंके सिद्धांत का अतिक्रमण है।

कार्यकाल निश्चित नहीं, बल्किजब तक पहले भंग किया जाए” — अतः कटौती संवैधानिक सीमा के भीतर।

संघवाद

केंद्र द्वारा राज्यों के चुनाव-चक्र में हस्तक्षेप संघीय स्वायत्तता को कमजोर करेगा।

राज्यों की स्वायत्तता समाप्त नहीं होती; चुनावी समय-सारिणी का समकालिक समायोजन संवैधानिक संशोधन के माध्यम से वैध है।

इसकी आवश्यकता : क्यों कराए जाएँ समवर्ती चुनाव?

  • चुनावी व्यय में भारी कमी, राजनीतिक दलों एवं निर्वाचन आयोग दोनों के लिए।
  • आदर्श आचार संहिता (MCC) की बार-बार लागू होने से विकास परियोजनाएँ रुकने की समस्या कम होगी।
  • सुरक्षा बलों की बार-बार तैनाती का बोझ घटेगा।
  • शासन तंत्र राजनीतिक नेतृत्व का फोकस नीति-निर्माण तथा दीर्घकालिक विकास पर बढ़ेगा।
  • चुनावी राजनीति के अतिरंजित प्रभाव से प्रशासनिक मशीनरी को स्थिरता मिलेगी।

सरकारी कदम, समिति और रिपोर्टें

  • 23वें विधि आयोग की रिपोर्ट: आयोग ने चरणबद्ध समकालिकता और सकारात्मक अविश्वास प्रस्ताव जैसे उपाय सुझाए।
  • 129वाँ संविधान संशोधन विधेयक: चुनावों के समकालिक संचालन के लिए कानूनी ढाँचा उपलब्ध कराने हेतु तैयार।
  • JPC की समीक्षा: विधेयक की संवैधानिक संगति, संघीय प्रभाव और व्यावहारिक चुनौतियों की जाँच।
  • उच्च-स्तरीय समिति (2023): अगस्त 2023 में केंद्र सरकार ने पूर्व राष्ट्रपति श्री रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता में गठित समिति ने संवैधानिक, प्रशासनिक एवं कानूनी व्यावहारिकताओं का अध्ययन किया।

रामनाथ कोविंद समिति की प्रमुख सिफ़ारिशें


  1. दो चरणों में लागू करने का मॉडलसमिति ने एक राष्ट्र एक चुनाव को एक झटके में लागू करने का सुझाव नहीं दिया, बल्कि दो चरणों में लागू करने का रोडमैप सुझाया:
  • चरण–1: लोकसभा + विधानसभा चुनाव एक साथ
  • चरण–2: स्थानीय निकायों को भी जोड़ा जाए


  1. संवैधानिक संशोधनों की सिफ़ारिश: निम्न प्रमुख अनुच्छेदों में संशोधन आवश्यक होंगे
  • अनुच्छेद 83(2)लोकसभा का कार्यकाल
  • अनुच्छेद 172(1)राज्य विधानसभाओं का कार्यकाल
  • अनुच्छेद 85 174संसद/विधानसभा सत्र और भंग
  • अनुच्छेद 356राष्ट्रपति शासन
  • अनुच्छेद 324निर्वाचन आयोग की शक्तियाँ

साथ ही, जन प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 में भी कई महत्वपूर्ण बदलाव आवश्यक बताए गए।


  1. सकारात्मक अविश्वास प्रस्ताव’ (Constructive Vote of No-Confidence): यह समिति की सबसे महत्वपूर्ण सिफ़ारिशों में से एक है।


  • क्या है यह तंत्र?
    सरकार को गिराने के लिए विपक्ष को केवलअविश्वासनहीं जताना होगा,
    बल्कि वैकल्पिक नेता भी प्रस्तावित करना होगाजैसा जर्मनी, स्पेन आदि देशों में होता है।
  • इससे मध्यावधि चुनाव की स्थिति कम होगी
  • समकालिक चुनावों का चक्र टूटने से बचेगा
  1. चुनाव चक्र टूटने परकार्यवाहक सरकार का मॉडल:यदि किसी राज्य या केंद्र में राजनीतिक संकट के कारण सरकार गिर जाए:
  • उस राज्य/केंद्र में अंतरिम सरकार काम करेगी,
  • पर नए चुनाव समकालिक चक्र के समय पर ही होंगे। इससे समकालिक चुनावों की निरंतरता बनी रहेगी।


विश्लेषण

  • सकारात्मक पहलें
  • इससे भारत का चुनावी प्रबंधन अधिक सुव्यवस्थित, कम-खर्चीला और प्रशासनिक रूप से कुशल हो सकता है।
  • यह मॉडल भारत के विशाल लोकतंत्र में चुनावी संरचना आधुनिकीकरण  की दिशा में बड़ा कदम माना जा सकता है।
  • चुनौतियाँ और संभावित जोखिम
  • राष्ट्रीय मुद्दों का प्रभाव राज्य-स्तरीय चुनावी विमर्श पर हावी हो सकता है, जिससे क्षेत्रीय मुद्दे और स्थानीय नेतृत्व कमजोर पड़ सकते हैं।
  • मजबूत केंद्रनिर्भर चुनावी चक्र से संघीय विविधता पर प्रतिकूल प्रभाव की आशंका।
  • मध्यावधि राजनीतिक संकट की स्थिति में मॉडल का संतुलन टूट सकता है।
  • यह अस्तित्व में तभी आएगा जब राज्य सरकारों और सभी राजनीतिक दलों की व्यापक सहमति बन सकेजो स्वयं एक चुनौती है।

आगे की राह

  • सकारात्मक अविश्वास प्रस्ताव (जर्मनी मॉडल) को अपनाना, ताकि मध्यावधि राजनीतिक संकटों के चलते चुनावी समकालिकता टूटे।
  • राज्यों के साथ व्यापक संवाद : बिना राजनीतिक सहमति, यह संशोधन व्यवहारिक नहीं होगा।
  • भारत निर्वाचन आयोग (ECI) को तकनीकी, मानव संसाधन और लॉजिस्टिक के स्तर पर अत्यंत सशक्त करना।
  • चरणबद्ध समकालिकता अपनानाजहाँ सभी चुनाव एक बार में नहीं, बल्कि कई वर्षों में व्यवस्थित तरीके से एक चक्र में लाए जाएँ।

निष्कर्ष

एक राष्ट्र, एक चुनावभारत के चुनावी ढाँचे में एक ऐतिहासिक और संरचनात्मक सुधार हो सकता है। परंतु यह तभी सफल होगा जब

  • संवैधानिक मूल्यों,
  • लोकतांत्रिक उत्तरदायित्व,
  • और संघीय विविधता

इन तीनों की रक्षा करते हुए इसे लागू किया जाए। विधि मंत्रालय की नवीनतम टिप्पणी ने इस प्रस्ताव को एक मजबूत संवैधानिक आधार अवश्य प्रदान किया है, लेकिन इसकी असली परीक्षा भारत के व्यवहारिक शासन-तंत्र, राजनीतिक सहमति, और संघीय संतुलन के बीच उचित सामंजस्य स्थापित करने में होगी।